बैगा आदिवासी के घर भी गूंजने लगीं स्वस्थ किलकारियां

 


-जटिल प्रकरणों का जिला अस्पताल में मुफ्त हो रहा ऑपरेशन 

-जिला अस्पताल में निशुल्क मिल रही है प्रसव की सुविधा

- महिलाओं के गर्भ संबंधी 8 प्रकरणों का हो चुका है सफल ऑपरेशन


कवर्धा, 25 फरवरी 2021.

जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के प्रयासों का सकात्मक परिणाम अब स्पष्ट दिखने लगा है। जिले की गरीब बैगा आदिवासी महिलाओं को भी जिले में ही सिजेरियन डिलीवरी का लाभ मिलने लगा है। इसके अलावा जिले में महिलाओं में गर्भ में संक्रमण के भी कई प्रकरण मिल रहे हैं, जिनमें से अब तक 8 जटिल प्रकरणों का हिस्टरेक्टॉमी किया जा चुका है।

यूट्रस रिमूवल को मेडिकल भाषा में हिस्टरेक्टॉमी कहते हैं। मेजर सर्जरी के तहत आने वाली यह सर्जरी कुछ खास हालातों में की जाती है। विशेषज्ञ के पास जाने पर कई जांचों के बाद यह तय किया जाता है कि यूट्रस निकाला जाना है या फिर दवाओं के जरिए ही हालात पर काबू पाया जा सकता है। इस ऑपरेशन के लिए मरीज को 1 लाख रुपये से ऊपर तक का खर्च आ सकता है, लेकिन जिला अस्पताल में यह मुफ्त में किया जा रहा है। 

इस संबंध में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. शैलेंद्र कुमार मंडल ने बताया, जिले भर के सभी स्वास्थ्य केंद्रों में नॉर्मल डिलीवरी तो होती ही थीं, लेकिन अब जिला अस्पताल में जटिल प्रसव प्रकरणों का सिजेरियन भी किया जा रहा है। इस सेवा के लिए स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अजित राडेकर और उनकी टीम को श्रेय दिया जा सकता है। इनके साथ डॉ. रूना सिंह व डॉ. मनीष नाग एनेस्थीसिया जैसे महत्वपूर्ण सेवा दे रहे हैं।

133 जटिल प्रकरणों की सिजेरियन डिलीवरी

सिविल सर्जन डॉ. सुरेश कुमार तिवारी बताते हैं, अप्रैल 2020 से जनवरी 2021 तक 133 जटिल प्रकरणों का सफलता पूर्वक सिजेरियन डिलीवरी जिला अस्पताल के चिकित्सकों की टीम द्वारा कराई जा चुकी है। पूर्व में ऐसे प्रकरणों को विवशतावश रेफर करना पड़ता था, लेकिन अब हालात काफी आशाजनक हैं। सबके प्रयासों का ही परिणाम है कि गरीब बैगा आदिवासी महिलाओं को भी सिजेरियन प्रसव का लाभ मिल पा रहा है। 


 ...तभी कराई जाती है सिजेरियन डिलीवरी

स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अजित राडेकर बताते हैं, ऐसा नहीं है कि सिजेरियन प्रसव नॉर्मल प्रसव से बेहतर होता है, बल्कि नॉर्मल डिलीवरी ही ज्यादा बेहतर होती है। लेकिन कुछ विशेष अथवा विपरीत परिस्थिति में सिजेरियन डिलीवरी ही आवश्यक हो जाती है। इन परिस्थितियों में ज्यादातर बच्चे का पोजिशन आढा या उल्टा होना, बच्चे का कोई अंग बाहर आने के बाद भी मां द्वारा पुश नहीं कर पाना, सीपीडी के चलते पेलेविस खराब होना, प्रसव पीड़ा न आना या बच्चे के पेट में गंदा पानी (मल-मूत्र) चला जाना शामिल है। ऐसी ही परिस्थितियों में सिजेरियन डिलीवरी की जाती है। सिजेरियन डिलीवरी के पूर्व चिकित्सक द्वारा अपने स्तर पर जच्चा का प्रसव कराने के लिए ट्रायल किया जाना आवश्यक है, जब हालात सिजेरियन के बैगर सुरक्षित प्रसव न होने की बन ही जाए, तभी सिजेरियन किया जाता है। 

जरूरी नहीं, दूसरा प्रसव भी सिजेरियन ही हो 

डॉ. अजित राडेकर ने बताया, गर्भकाल में यदि गर्भवती द्वारा सही खान-पान, डॉक्टर की सलाह पर व्यायाम व अपने रोजमर्रा के कार्यों में सक्रिय रहने की आदत हो तो नॉर्मल डिलीवरी में मदद मिलती है। विशेष विपरीत हालात में ही चिकित्सक द्वारा बेड रेस्ट की सलाह दी जाती है। वे बताते हैं कि पहला प्रसव सिजेरियन होने के बाद दूसरा प्रसव नॉर्मल हो सकता है, यह सम्भव है। डॉ. राडेकर जिला अस्पताल में पीपीएच, एक्लेमसिया और रिटेंड प्लेजेंटा के प्रकरणों का उपचार भी कर रहे हैं। वे बताते हैं कि उच्च रक्त चाप के साथ प्रोटीन्यूरिया की उपस्थिति के साथ ऐंठन या ताण आना एक्लेमसिया की स्थिति कहलाती है। गर्भावस्था के दौरान यदि समय रहते उच्च रक्त चाप की पहचान एवं उपचार नहीं किया जाता तो यह एक्लेमसिया में परिवर्तित हो जाता है।

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